हज करने का तरीक़ा हिंदी में

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इस्लाम का पाँचवा रकन हज है, इस पोस्ट में हम हज करने के तरीके के बारे में बात करेंगे। 

हज हर उस बालिग मुस्लमान के ऊपर फ़र्ज़ होता है, जो बेत-उल्लाल शरीफ तक आने-जाने का खर्च, अपने बीवी और बच्चो की ज़रूरत से ज़्यादा रखता हो।

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हज की ताकीद

जब हज फ़र्ज़ हो जाये तो जहाँ तक मुम्किन हो जल्द से जल्द अदा किया जाये और देरी ना करी जाये।

जो हज के काबिल हो कर भी हज नही करता है उसके लिए हदीस में आया है -:

जिस सख्स को किसी ज़रूरी हाजत या ज़ालिम बादशा और गंभीर बीमारी ने हज से नहीं रोका और उस ने हज नहीं किया और मर गया तो वो चाहे यहूदी हो कर मरे या नसरानी हो कर मरे।  

अहराम

अहराम का मतलब है हराम करना, हाजी हज या उमराह की नियत पक्की कर के तलबियाह पढ़ लेते है, उस
वक्त से कुछ हलाल चीज़े हराम हो जाती है। 

अहराम के लिए दो चादरों का इस्तेमाल किया जाता है।

अहराम बाँधने का तरीका

  • सब से पहले अहराम बाँधने की नियत से ग़ुस्ल करना। 
  • किसी वजह से गुसल ना कर सके तो वज़ू कर लेना।  
  • इसके बाद सिले हुए कपड़े निकाल कर एक लुंगी बाँध लेना और एक चादर औड़ लेना। 
  • इस के बाद अहराम की नियत से दो रकात नफिल नमाज़ पढ़ी जाती है।

अहराम के सही होने के लिए नियत करना और तलबियाह पढ़ना ज़रूरी है।

औरत का अहराम भी आदमियों की तरह है, सिर्फ ये फर्क है की औरत को सर ढ़कना वाजिब है और मुँह पर कपड़ा लगाना मना है, और सिले हुए कपडे पहनना जायज़ है।

मर्दो के लिए सिले हुए कपड़े जैसे कुर्ता, पेजमा, टोपी, मोज़े अचकन जैसी चीज़े पहनना मना है।  

अहराम की लम्बाई इतनी होनी चाहिए कि सीधे कंधे से लेकर उलटे कंधे तक सहूलत के साथ आजाये, और तेबंद इतना हो की पूरा इसतर छुप जाये।

तेबन्द में सहूलत के लिए जेब लगाना जायज़ है।

अहराम बाँधने के बाद ये चीज़े नही करते

  • सर और चेहरे को कपड़े से ढकना । 
  • बाल या नाख़ून काटना। 
  • खुशबु लगाना और खुशबूदार चीज़ो का इस्तेमाल करना। 
  • सिला हुआ कपड़ा पहन्ना। 
  • बीवी से सुहबत करना या उस तरीके की बात करना जिस से खुआहिश पैदा हो।
  • शिकार करना या शिकार करने में किसी की मद्द करना। 
  • ऐसा मोज़ा या जूता पहनना जिस से पैर की बीच वाली हड्डी छुप जाये। 
  • जुऐ मारना या बदन से मेल छुटाना।
  • साथियोँ के साथ लड़ाई झगड़ा करना और हर वो काम जिस से अल्लाह ताला नाराज़ हो।

औरतों को सिले हुए कपड़े पहनना इसी तरह सर छुपाना अहराम की हालत में जायज़ है, लेकिन कपड़ा इस तरह ढके की कपड़ा चेहरे पर ना लगे।

हज के फ़र्ज़ 

हज में तीन फ़र्ज़ है -: इन तीनो फ़र्ज़ में से अगर कोई भी चीज़ छूट जायेगा तो हज नहीं होगा।

  1. अहराम मतलब दिल से हज की नियत करके तलबियाह पढ़ना और जिन चीज़ो से बचना ज़रूरी है उन से बचना।
  2. अहराम की हालत में मैदाने अराफात में 9 ज़िल्हिज्जा को सूरज ढलने के वक़्त से 10 ज़िल्हिज्जा की सुबह सादिक तक किसी भी वक़्त ठहरना (चाहे 1 घड़ी हो )
  3. तवाफ़े ज़ियारत मतलब 10 ज़िल्हिज्जा की सुबह से 12 ज़िल्हिज्जा की शाम तक खानए काबा का तवाफ़ करना।

हज की सुन्नतें 

हज में सुन्नते है -: हज में सुन्नत का हुकुम ये है कि इनको छोड़ना बुरा है लेकिन इनके बिना भी हज हो जाता है, सुन्नत अदा करने से सवाब और भी बढ़ जाता है।

  1. बैतुल्लाह पहुंचते ही तवाफ़ करना
  2. पहले तीन चक्क्रों में मुंडे हिला कर पहलवानो की तरह चलना
  3. 9 ज़िल्हिज्जा की रात मीना में गुज़ारना
  4. 9 ज़िल्हिज्जा को सूरज निकलने के बाद मीना से अरफ़ात जाना
  5. अरफ़ा में गुसल करना
  6. 9,10 और 11 तारीख को मीना में थोड़ी देर के लिए ठहरना।
  7. मीना से वापसी में थोड़ी देर के लिए मुहस्साब में ठहरना
  8. अहराम के शुरू दिन से 10 ज़िल्हिज्जा तक खूब तलबियाह पढ़ना। 

हज में वाजिब 

अगर कोई वाजिब अमल छूट जाये गा तो हज हो जायेगा, चाहे गलती से छूटा हो या जान बुझ के मगर इस के जगह क़ुरबानी या फिर सदका देना होगा।

हज में 6 वाजिब है -:

  1. 10 ज़िल्हिज्जा की रात सुबह सादिक से लेकर सूरज निकलने तक दरमियानी वक्त मज़दलफा में ठहरना। 
  2. साफा और मरवा के दरमियान सई करना (7 चक्कर लगाना)
  3. जमरों पर कंकरिया मारना 
  4. क़ुरबानी करना अगर हज के साथ उमरा भी कर रहे हों। 
  5. सर के बाल काटना या मुंडवाना 
  6. रुखसत होते वक़्त तवाफ़ करना 

हज करने के पाँच दिन 

8 ज़िल्हिज्जा से 12 ज़िल्हिज्जा तक हज के पाँच दिन होते हैं। 

7 तारिख की शाम से मीना (जगह का नाम) की त्यारी करी जाती है और ऐहराम बँधा जाता है। 

हज का पहला दिन

8 तारिख की सुबह फजिर की नमाज़ के बाद मीना जाने के वक़्त तलबियाह कसरत से पड़ीं जाती है, इस वक़्त ये कलमात अल्लाह ताला को बहुत ज़्यादा पसंद हैं।

अस्तगफार और दुरुद शरीफ को भी कसरत से पढ़ना चाहिए, 8 तारिख को यहाँ ज़ोहर, असर, मगरिब और ईशा की नमाज़ और 9 की सुबह की फजिर की नमाज़ पढ़ना ज़रूरी है।

इस तरह पूरा दिन और रात मीना में गुज़ारा जाता है। 

हज का दूसरा दिन

हज का दूसरा सिन मतलब 9  तारीख को फजिर की नमाज़ मीना पढ़ने में के बाद, अराफात जाना होता है। 

इसे अरफ़ा का दिन कहते है इस दिन जिस कदर हो सके लब्बेक, दुरुद और चौथा कलमा खूब कसरत से पढ़ना चाहिए और खूब दुआएँ मांगनी चाहिये।

ये जगह दुआ, तोबा, और अस्तगफार की कबूलियत की होती है यहाँ ज़ोहर और असर की नमाज़ एक साथ मिला कर पढ़ी जाती है। 

जब सूरज गुरुब हो जाता हे तो अराफात से मुज़दलफा रवाना हो जाते हैं। 

यहाँ मगरिब और ईशा की नमाज़ एक साथ मिला कर पढ़ी जाती है, ये रात मुज़दलफा में गुज़ारनी होती है। 

यहाँ भी खूब दुआ मांगी जाती है, सुबह फजिर की नमाज़ पढ़के यहाँ से कंकरीयाँ ले कर सुबह सादिक के बाद थोड़ी दूर मुज़दलफा में ठहरना वाजिब हे। 

हज का तीसरा दिन

हज का तीसरा दिन मतलब 10 तारीख की सुबह मुज़दलफा से मीना जाकर यहाँ बड़े शैतान को सात कङ्करियाँ मारी जाती हैं।

कङ्करियाँ मरने से पहले लब्बेक पढ़ना बंद कर दिया जाता है।

और इस के बाद कुर्बानी करके सर मुंडवा दिया जाता है और अहराम खोल दिया जाता है, और रोज़ पहनने वाला लिबास पहन लिया जाता है।

यहाँ से अहराम की पाबन्दी तो ख़तम हो जाती है लेकि बीवी ‘तवाफ़े ज़ियारत’ के बाद हलाल होगी।

इस के बाद हज का तीसरा ज़रूरी रकन ‘तवाफ़े ज़ियारत’ किया जाता है

ये ज़ियारत 12 तारिख के ग्रुब से पहले पहले किया जा सकता है, मगर 10 तारिख को करना अफ़ज़ल है।

और इसके बाद साफा मरवा की सई करी जाती है।

हज का चौथा दिन

11 तारीख को हज का चौथा दिन होता है, तवाफ़ और ज़ियारत के बाद 11 तारीख को मीना जाया जाता है।

इस दिन ज़वाल के बाद से गुरुब तक तीनो शैतानों को कङ्करियाँ मारी जाती है।

सब से पहले छोटे शैतान पर बिस्मिल्लाह पड़ के एक एक करके सात कङ्करियाँ मार कर दाई जानिब क़िबला की तरफ हो कर दुआ माँगी जाती है।

इसी तरह फिर दरमियानी शैतान को सात कङ्करियाँ मारके पीछे हट के दुआ करी जाती है।

इसके बाद बड़े शैतान के ऊपर सात कङ्करियाँ मारी जाती है लेकिन दुआ नहीं करी जाती है।

हज का पाँचवा दिन

12 तारीख को हज का पाँचवा दिन होता है, अगर किसी ने क़ुरबानी, तवाफ़ या ज़ियारत नहीं करा है तो वो आज भी कर सकता है।

आज का मख़सूस काम ज़वाल के बाद इसी तरतीब के साथ शैतानो को कङ्करियाँ मरने का है।

इस के बाद गुरुब से पहले मीना से मक्का शरीफ जा कर अगर वापस जाने का इरादा है तो “तवाफ़े विदा” कर लें।

12 तारीख मीना के अंदर सूरज गुरुब हो जाता है तो 13 तारिख को भी कङ्करियाँ मारना ज़रूरी हो जाता है।

“तवाफ़े विदा” के बाद ज़मज़म का पानी पिये और खूब दुआ करें।

काबा का गिलाफ पकड़ कर जुदाई का अहसास करके खूब रोये।

ये था हज करने का तरीका अगर आपका कोई सवाल है तो आप नीचे कमेंट करके पूछ सकते है। अल्लाह सबको हज करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए (आमीन)

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