सूरह लि ईलाफि क़ुरैश हिंदी में। Surah Liilafi Quraish in Hindi

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अस्सलामु अलैकुम नाज़रीन आज हम सूरेह क़ुरैश को हिंदी में तर्जुमे के साथ पढ़ना सीखेंगे।

सूरह क़ुरैश क़ुरान की तमाम सूरतों में से एक सूरह है और ये सूरह मक्की सूरह, इस सूरह में 4 आयतें हैं और ये सूरह क़ुरआन के 30 वें पारे में है, ये क़ुरआन की 106वीं सूरह है।

सूरह क़ुरैश

बिस्मिल्लाहहिर्रहमाननिर्रहीम

शुरू करता हूं अल्लाह के नाम से जो निहायत रेहम करने वाला है।

लि ईलाफि क़ुरैश

पस के अल्लाह नें क़ुरैश को जाड़ों और गर्मियों से मानूस कर दिया गया है।

इलाफिहिम रिहलतश शिताई वस सैफ

तो उन को मानूस कर देने की वजह से।

फल यअबुदू रब्बा हाज़ल बैत

इस घर (काबा) के मालिक की इबादत करनी चाहिए।

अल्लज़ी अत अमहुम मिन जूअ इन आमनहुम मिन ख़ौफ

जिसने उनको भूख में खाना दिया और उनको खौफ़ से अमन अता किया।

सूरह क़ुरैश पढ़ने के फायदे

  • सूरह क़ुरैश  की तिलावत करने वाला उसके जैसा है जिसने काबा शरीफ का तवाफ़ किया और उसमें रहा हो।
  • इस सूरह की तिलावत करने वाले के लिए मस्जिदे नब्बी में नमाज़ पढ़ने और तवाफ़ करने वालों की तादाद का दस गुना इनाम मिलेगा।
  • जो शख़्स बार-बार सूरत क़ुरैश की तिलावत करता है। अल्लाह क़यामत के दिन उसे जन्नत की सवारी में से एक सवारी देगा। जो उसे जन्नत के एक बहुत ही ख़ास हिस्से में ले जाएगी।।
  • अगर सूरह क़ुरैश खाने से पहले तिलावत लिया जाए तो यह खाना, खाने वाले को नुकसान नहीं पहुंचाएगा और यह हर बीमारी से मेहफ़ूज़ रहेगा , इंशाल्लाह।
  • दिल के रोगियों को चाहिए कि इस सूरह कुरैस की तिलावत करा करें और फिर धीरे से पीने के पानी में फूंक मारकर पीना चाहिए। तुलु आफताब (सूरज निकलने) से पहले सूरह क़ुरैश  की तिलावत करने से रिज़्क़ तलाश करना आसान हो जाता है।

सूरह क़ुरैश कब और क्यों नाज़िल हुई

  • सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया “अल्लाह ने क़ुरैश  को सात ख़ुसुसियात के साथ नवाज़ा है जो अल्लाह ने उनसे पहले किसी को नहीं दी और उनके बाद कभी किसी को नहीं देगा।
  • ख़लीफा (अल-ख़िलाफ़) का पद उनमें से एक को दिया गया।
  • पाक घर (अल-हिजाबा) की हिरासत उनमें से किसी के ज़रिये फ़र्ज़ की गई।
  • हज के दौरान हाजियों को को पानी देना उनमें से किसी के ज़रिये किया जाता है।
  • उनमें से किसी को ख्त्में नबूबत दी जाती है।
  • उन्हें हाथियों की फौज पर जीत दिलाई गई।
  • उन्होंने सात साल तक अल्लाह की इबादत की जिसके दौरान किसी ने भी अल्लाह की इबादत नहीं की। ये सूरह क़ुरैश क़बीले बारे में नाजिल की गयी जिसमें उनके अलावा किसी और का ज़िक्र नहीं किया गया था।

हदीस:-

“अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नें इरशाद फ़रमाया हक़ीक़त में अल्लाह ने इब्राहिम अलैहिस्सलाम के बच्चों में से इस्माइल अलैहिस्सलाम को चुना है, और उसने इस्माइल अलैहिस्सलाम के बच्चों में से बनू किनानाह को चुना है, और उसने बनू किनानाह से क़ुरैश  को चुना है, और उसने क़ुरैश  से बनू हाशिम को चुना है, और उसने मुझे बनू हाशिम से चुना है।” (मुस्लिम और तिर्मिज़ी)

क़ुरैश पर अल्लाह के तीन इनाम

अल्लाह तआला ने क़ुरैश को तीन इनआमों के अहसान पर याद किया हैं और ये तीनों इनाम उनको काबे की वजह से ही हासिल थे।

  1. गर्म और ठन्डे मौसम में बगैर किसी डर व खौफ़ के (तवील) लम्बा तिजारती सफ़र करना।
  2. ऐसी सरज़मीन में बसने के बावुजूद जहाँ न पानी था और न घास उगती थी फिर भी खाने पीने की चीज़ें मुहय्या हो जाना।
  3. कोई ऐसी हुकूमत न थी जो अमन कायम करती हर तरफ जानो माल का ख़तरा लेकिन ऐसे हाल में भी उनका महफूज़ रहना।

सूरह क़ुरैश से हमें क्या हुक़ुम मिलता है ?

सूरह क़ुरैश से ये सबक़ हासिल होता है कि हमें हमारी ज़िन्दगी के सभी ख़ौफ़ों से महफूज़ रखने वाला सिर्फ एक अल्लाह है। अल्लाह ही है जो इज्ज़तों को अता करने बाला है जैसे की अल्लाह ने क़ुरैश क़बीले को इज़्ज़त अता की।

इस सूरह का एक अहम पहलू ये भी है कि ज़िन्दगी की ज़रूरतों का पूरा होना और अमनो- अमान अल्लाह की दो बड़ी नियामत हैं। अगर ये नियामत किसी को हासिल हों तो ये समझ जाओ कि उसे दुनिया की तमाम नियामतें हासिल हैं और फिर उसका फ़र्ज़ बनता है कि अपने परवरदिगार का शुक्र अदा करे।

क़बीला ए क़ुरैश कौन थे ?

क़ुरैशअरब के एक क़बीले का नाम है जो मक्का में आबाद था और काबे की देख रेख उन के ज़िम्मे थी, और मक्का में न खेती थी और न ही जानवरों की परवरिश हो पाती थी क्यूंकि उन के लिए चारे का इन्तिज़ाम नहीं था और ऊँट की परवरिश इसलिए की जाती थी कि वो कांटेदार पौधों को भी अपनी ख़ुराक बना लेता है।

चूंकि क़ुरैश की रोज़ी रोटी का मदार सिर्फ़ तिजारत पर था और तिजारत के लिए ये लोग आम तौर पर दो सफ़र किया करते थे, एक सर्दी के मौसम में यमन का क्यूंकि वहां का मौसम गर्म होता था। और गर्मी के मौसम में शाम का क्यूंकि वहां का मौसम ठंडा होता था। लेकिन ये ऐसे इलाक़े थे जहाँ हुकूमत का नमो निशान तक नहीं था।

 गरीबी बहुत थी इसलिए रास्ते में काफिलों के साथ लूट मार हो जाती थी और सफ़र करने वालों को जान माल का ख़तरा रहता था, लेकिन क़ुरैश क़बीले वालों की हर कोई इज्ज़त व एहतराम करता था और उन पर कोई हमला नहीं करता था। क्यूंकि लोगो का कहते थे ये काबे के मुतवल्ली हैं, अल्लाह के घर (काबा शरीफ) के ज़िम्मेदार हैं जो लोग मक्का जाते हैं उन की ये लोग मेहमान नवाज़ी करते हैं इसलिए पूरे सफ़र में क़ुरैश को कोई नहीं छेड़ता था ख़ास कर असहाबे फ़ील के वाकिये के बाद तो लोगों की निगाह में क़ुरैश की इज्ज़त और बढ़ गयी।

नसीहत:- क़ुरआन को हमेशा ठहर ठहर के और सही और यक़ीन के साथ पढ़ा करें।

सूरह क़ुरैश Hindi PDF

नॉट:- नाज़रीन ये था सूरेह क़ुरैश को हिंदी में पढ़ने का तरीक़ा और कुछ बातें जो क़ुरआन और हदीस से मिलती हैं।
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जज़ाक अल्लाह………

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