निकाह कैसे करें। Nikah kese karin in Hindi|

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अस्सलामु अलैकुम नाज़रीन आज हम निकाह के बारे पढ़ेंगे कि निकाह कैसे किया जाता है।

निकाह के बारे में सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया जब किसी मुसलमान ने निकाह कर लिया तो उस ने आधे दीन की तकमील (पूरा होना) कर ली, और अब उसे अपने आधे दीन के बारे में खुदा से डरे।

नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि निकाह मेरी और मुझ से पहले नबियों कि सुन्नत है। बाज़ सहाबा जिन पर ज़ोहद (परहेज़गारी) का ग़लबा (ज़ोर) था उन्होंने बीवी के हुक़ूक़ अदा करने में लापरवाही की तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सख़्त तंबिया (नसीहत) फ़रमाई और अपना हवाला देते हुए फ़रमाया कि तुम में सब से ज़्यादा मुत्तक़ी (अल्लाह से डरने वाला) मैं हूं और उस के बावजूद मैं रात में सोता हूं और इबादत गुज़री भी करता हूं, बाज़ दिन रोज़ा रखता हूं, और बाज़ दिन रोज़े नहीं रखता और औरतों से निकाह करता हूं। सुन लो ! निकाह मेरी सुन्न

मेहर क्या है ?

मेहर वो रक़म है जो शादी के वक़्त दूल्हा या दूल्हे का बाप दुल्हन को देता है मेहर रुपया, ज़ेवरात, घरेलू सामान, फर्नीचर या फिर ज़मीन वग़ैरह की शक़्ल में भी हो अदा कर सकते हैं।

सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पैग़ाम से पहले ज़माना-ए-जाहिलियत में भी मेहर मुक़र्रर किया जाता था, इस्लाम में इस तरीक़े को बरक़रार रखा गया, मेहर की मिक़्दार को बहुत ज़्यादा मुक़र्रर करना अच्छा नही समझा गया, बाक़ी जो भी मुक़र्रर हो जाये वो शौहर की हेसयत के हिसाब से ज़्यादा भी अगर हो तो भी वो मेहर लाज़िम हो जाता है।

मेहर की अदायगी ज़रूरी है, लेकिन अगर औरत अपनी ख़ुशी से माफ़ कर दे तो कोई परेशानी नहीं है मेहर माफ़ हो जाती है, लेकिन अगर औरत से कह कर माफ़ करवाया जाये इसे अच्छा नहीं समझा गया, याद रहे औरत अपनी मरज़ी से ही माफ़ करे तो कोई दिक्कत नहीं।

क्या इस्लाम में पसंद की शादी कर सकते हैं?

जी हाँ ! बिल्कुल इस्लाम कहता है जिस से आप को मुहब्बत हो उससे आप निकाह करो। और फ़रमाया जहां तुम्हे लड़का या लड़की पसंद हो उस के घर रिश्ता भेजो।
लड़का और लड़की अपनी पसंद का इज़हार अपने घर वालो से कर सकते हैं, इस में कोई बेशर्मी नहीं है।

इसी तरह ज़बरदस्ती निकाह करने कि इज्ज़त नहीं है। हत्ता कि माँ बाप को भी अपने बेटे और बेटी की बिना उस की मर्ज़ी से निकाह कराने से सख़्त मना किया गया गए।

अपने बच्चो को डरा धमका कर या फिर छल कपट कर के निकाह के लिए राज़ी करना हराम है।

निकाह किन लोगों से करना जायज़ है और किन लोगों से नहीं

  • हुज़ूर अकरम अस्सलामु अलैकुम ने इरशाद फ़रमाया कि तुम किसी शराबी से अपनी बेटी की शादी न करो, मुझे उस ज़ात की कसम जिस ने मुझे हक़ वाला नबी बनाया शराबी पर आसमान की तमाम किताबें लानत देती हैं।
  • क़ुरआन करीम कहता है कि माँ, बहन, नानी, दादी,बेटी, वग़ैरह से निकाह करना हराम है।
  • इन तमाम रिश्तों से निकाह करना हराम है। चाहे नानी, परनानी, दादी, परदादी, पोती, परपोती, वग़ैरह बीच में चाहे कितनी ही फासला क्यों जाएँ इन सब निकाह करना हराम होगा।
  • ख़ाला, ख़ाला की ख़ाला, भतीजी, भतीजी, भांजी और भांजी की बेटी, फूफी, फूफी की फूफी, पोती या नवासी वग़ैरह इन सब रिश्तों से भी निकाह करना हराम है।
  • नबी करीम अस्सलामु अलैकुम ने फ़रमाया कि जिन रिश्तों से विलादत (पैदाइश) से निकाह करना हराम होता है उसी तरह दूध के रिश्ते से भी निकाह हराम हो जाता है।
  • जिन लोगों में मर्द और औरत दोनों कि अलमत (निशानी) पायी जाये, और ये साबित करना मुश्किल हो कि मर्द है या औरत तो उससे न तो औरत का निकाह होगा और न ही मर्द का निकाह हो सकता है।
  • अल्लाह क़ुरआन में फरमाता है कि अपनी बेटी का निकाह मुशरिकों (जो मुसलमान न हो ) में न करो, जब तक वो ईमान वाला न जो जाये।
  • आज कल लोग मुस्लिम नौजवान लड़के काफ़िरा (जो मुसलमान न हो) औरतों से निकाह करते हैं और निकाह के बाद उन्हें मुस्लमान बनाते हैं, ये तरीक़ा बिलकुल ग़लत है और हराम है और इस तरह निकाह भी न होगा, क्योकि निकाह के वक़्त लड़की कुफ्र करती थी। सही तरीक़ा ये है कि पहले ईमान लाये, बिना किसी ज़ोर ज़बरदस्ती और दिल से मुस्लमान बने फिर निकाह किया जाये।
  • हज़रत मुहम्मद मुस्तफा अस्सलामु अलैकुम ने इरशाद फ़रमाया कि चार से ज़्यादा बीवियां इस तरह हराम है जिस तरह एक आदमी पर अपमी बहन और बेटी हराम है।

निकाह में होने वाली गलतियां

  • बाज़ जगह अवाम बिना गवाह मर्द और औरत की रज़ा मंदी से निकाह हो जाने को सही समझते हैं, ये गुमान बिल्कुल गलत है, इस तरह निकाह हर गिज़ नहीं होगा, वो ज़िना होगा।
  • आज कल शादी करने में ये कोई नहीं देखता कि लड़के में दीन भी है या नहीं? ईमान भी है या नहीं? बल्कि ये देखते हैं कि माल है भी या नहीं। फिर चाहे बेदीन ही क्यों न हो, बदशक्ल हो, बद इख़लाक़ हो बल्कि लोगो का कहना है कि देखने कि बात ये है कि दो पैसे लड़की को कमा कर खिला सके। अब चाहे वो रिशवत से कमाए, सूद से कमाए, चोरी कर के लाये, झूठ बोल के लाये किसी तरह भी लाये मगर पैसा लाये आज के दौर में कोई कुछ नहीं पूछता। मसलन कहने कि बात ये है कि दीन लोगो में कम हो गया है।
  • अवाम का कहना है कि अगर कोई आदमी न जायज़ निकाह में शामिल हो गया तो उस का निकाह टूट जाता है ये बात बिल्कुल गलत है, हाँ ऐसी ग़ैर मशरुह निकाह में शिरकत करना, मदद करना वग़ैरह सब नाजायज़ और गुनाह है।
  • मशहूर है कि लड़का और लड़की कि शादी जेठ के महीने में नहीं करना चाहिए ये बात भी बिल्कुल ग़लत है।

हदीस :- हुज़ूर अक़दस मुहम्मद मुस्तफा अस्सलामु अलैकुम ने इरशाद फ़रमाया कि अपना निकाह ईमान वालो के साथ करो।

नॉट :- नाज़रीन ये था निकाह से जुड़ी कुछ ज़रूरी बातें जो क़ुरआन और हदीस से साबित होती है।
अगर आप का दीन और दुनिया से जुड़ा कोई सवाल है, या फिर आप हमें कुछ नसीहत करना चाहते हैं। हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं।

उम्मीद करते हैं आप को पोस्ट पसंद आयी होगी और निकाह से जुड़े आप के जितने सवाल होने उन्हें आप ढूंढ पाए होंगे।
जज़ाक़ अल्लाह।

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