क़ुरबानी की दुआ और तरीका। Qurbani ki Dua or Tarika

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अस्सलामु अलैकुम नाज़रीन आज हम पढ़ेंगे क़ुरबानी की दुआ और तरीक़ा ।

जो आदमी साहिब ए निसाब (मालो ज़र का मालिक) हो या निसाब असली ज़रूरत से ज़्यादा की क़ीमत के बराबर माल व असबाब रखता हो, बेशक से अगर माल पर एक साल भी न गुज़रा हो, उस को ईद उल फ़ित्र के दिन सदक़ा देना और ईद उल दोहा के दिन क़ुरबानी करना वाजिब है।

क़ुरबानी की दुआ

इन्नी वज्जहतु वजहिय लिल्लज़ी फ़तरस्समावाति वल्अरज़ा हनीफ़ंव व मा अना मिनल्मुशरिकीन, इन्ना सलाती व नुसुकी व महयाया व ममाती लिल्लाहि रब्बिल अ़ालमीन, ला शरीक लहु व बिज़ालिक उमिरतु व अना मिनल्मुस्लिमीन, अल्लाहुम्म मिन्क व लक अन

अन के बाद अपना या फिर जिस की तरफ से ज़बह कर रहे हो उस का नाम लें उसके बाद बिस्मिल्लाहि अल्लाहु अकबर कह के जबाह करें।

क़ुरबानी का सही और मुक़र्र वक़्त

मसला:- चाँद की दसवीं तारीख़ की सुबह सादिक़ से लेकर बारहवीं तारीख़ के ग़ुरूब-ए-आफ़ताब तक क़ुरबानी करने का वक़्त है इन तीन दिनों में जिस दिन चाहें क़ुरबानी कर सकते हैं लेकिन बेहतरीन चाँद की दस तारीख़ बक़रा ईद का दिन है।

मसला:- ईद की नमाज़ से पहले क़ुरबानी करना दुरस्त नहीं, हाँ अगर जिन देहात और क़स्बों में ईद की नमाज़ नहीं होती वहाँ नमाज़ से पहले सादिक़ के फ़ौरन बाद क़ुरबानी कर सकते हैं।

क़ुरबानी की नियत

मसला:- क़ुरबानी करते वक़्त ज़ुबान से नियत करना और दुआ पढ़ना ज़रूरी नहीं अगर दिल से नियत कर ली कि मैं क़ुरबानी करता हूं और ज़बान से कुछ नहीं पढ़ा बस “बिस्मिल्ला-हिर्रहमा-निर्रहीम” “अल्लाहो अकबर ” कह कर ज़ब्ह कर दिया तो क़ुरबानी हो गयी।

किन जानवरों की क़ुरबानी करना जायज़ है

मसला:- बकरा, बकरी, भेड़, दुम्बा, गायें, बेल, भैंस, भैंसा, ऊंट, ऊंटनी इन दस जानवरों की क़ुरबानी करना दुरस्त है, इन जानवरों के अलावा और किसी जानवर की क़ुरबानी करना दुरस्त नहीं।

  • ऊंट, ऊंटनी पांच साल के, गाय, बैल, भैंस, भैंसा दो साल के, बकरा, बकरी, भेड़, दुम्बा एक साल के होने चाहिए।
  • हैं अगर भेड़, दुम्बा आगर ख़ूब फ़रबा और तैयार हों और एक साल के बराबर मालूम होते हों तो छे महीने का दुम्बा और भेड़ की क़ुरबानी करना जायज़ है। बाक़ी जानवरों में अगर वक़्त पूरा होने में एक दिन भी कम होगा तो क़ुरबानी करना जायज़ नहीं।

मसला:- बकरा, बकरी, दुम्बा, भेद फ़क़त एक आदमी की तरफ से हों सकते हैं, गाय, बैल, भैंस, भैंसा, ऊंट, ऊंटनी में सात आदमी शरीक हों सकते हैं।

क़ुरबानी में होने वाली गलतियां

बाज़ लोग ये गलतियां अक्सर करते हैं।

  • बाज़ आवाम कहती हैं कि बकरा ईद के रोज़ क़ुरबानी होने तक रोज़े से रहें ये मेहज़ बे असल है। बल्कि अपनी क़ुरबानी से खाना मुस्तहब (अच्छा) है। और अगर क़ुरबानी के गोश्त से पहले कुछ खा ली लिया तो कोई गुनाह नहीं है।
  • बाज़ लोग बध्या (खस्सी) जानवर की क़ुरबानी करना दुरस्त नहीं समझते, सो ये उन की गलती है। बल्कि खस्सी जानवर की क़ुरबानी और भी ज़्यादा फ़ज़ीलत वाली है। हमारे पैग़ंबर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बध्या (खस्सी) दुम्बे की क़ुरबानी फ़रमाई।
  • बाज़ लोग ये कहते हैं कि जिस क़दर आदमी जानवर को लेते हैं (जिस जानवर में हिस्सेदार हों, जैसे गाय, बिल, ऊँट वग़ैरह) उस में सब को बिस्मिल्लाह और अल्ल्ह हों अकबर कहना ज़रूरी है। अगर कोई इस तकबीर से रह जायेगा तो क़ुरबानी न होगी। “ऐसी बातें बिल्कुल ग़लत हैं ” सिर्फ ज़ब्ह करने वाले को कहना ज़रूरी होता है।
  • अक्सर लोग गोश्त को बिना वज़न किये ही तक़सीम कर लेते हैं। “ये बिल्कुल ग़लत है “
  • बाज़ लोग ज़ब्ह से पहले ही खाल फ़रोख़्त कर देते हैं, याद रहें ज़ब्ह से पहले खाल फ़रोख़्त करना हराम है।
  • बाज़ लोग बुड्ढा, दुबला, पतला, बेढंगा, सस्ता जानवर क़ुरबानी के लिए तजवीज़ करते हैं, याद रहे कि क़ुरबानी का जानवर ख़ूब अच्छा, मोटा, ताज़ा, खूबसूरत हों, न कि बदसूरत।
  • 3 दिन से ज़यादा क़ुरबानी का ग़ोश्त खाना और बचाना जायज़ है 3 दिन के अंदर अंदर ग़ोश्त ख़त्म करने का हुक़ुम कुछ वक़्त के लिए था जो बाद में हटा दिया गया।

जानवर ज़ब्ह करने कि हिदायत

  • ज़ब्ह करने से पहले चारा खिलाना, पानी पिलाना और छुरी पहले से ही ख़ूब तेज़ कर लेना चाहिए।
  • ज़ब्ह की जगह ले जाते वक़्त घसीट कर ले जानाऔर बहुत सख़्ती से गिराना मकरूह है।
  • एक जानवर को दूसरे जानवर कि सामने ज़ब्ह करना या जानवर कि सामने छुरी तेज़ करना मकरूह है।
  • गर्दन के ऊपर से ज़ब्ह करना और जानवर के ठंडा होने से पहले खाल उतरना मकरूह है।

नॉट :- नाज़रीन ये था क़ुरबानी करने का सही तरीक़ा और कुछ ज़रूरी बातें जो क़ुरआन और हदीस से साबित होती हैं। अगर आप का दीन और दुनिया से जुड़ा कोई सवाल है, या फिर आप हमें कुछ नसीहत करना चाहते हैं। हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताएं।


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जज़ाक़ अल्लाह।

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